
हां, मैंने देखा है ना साहब
नारी को करीब से देखा है
मौन के भीतर से सिसकते देखा है
दीवारों पर उसकी
खामोश परछाई को देखा है
आंसुओं को उसके तिरते देखा है
नहीं, नहीं वह नारी
तुमने देखी है क्या
जो परिवार के लिए मरती है
हां, वही वही साहब
जो रोटी तो सेंक देती है
आंचल थाम कर
पर उसकी स्वयं की जीवन की किताब अधूरी रह जाती है
उसके लाखों सपनों को
टूटते देखा है मैंने
हां, हां वही नारी देखी है मैंने
जो कभी माँ बन के तपी थी
हर रिश्ते में जो झुकी थी
शायद अब वह थमेगी नहीं
दहक जाएगी रुकेगी नहीं
अब देख रही हूं
उस नारी को मैं
जो लिख रही इतिहास भारत का
जो लिख रही सत्य सृष्टि का
अनंत की चिर ज्योति बनी अब
सृष्टि की धड़कन बनी अब